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खूनी पर्चा व् इंडियन लीजन का मार्च गीत

भरद्वाज विमान
भरद्वाज विमान
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ज़ीरो ऑवर की संसद की कार्यवाही देख रहा था की खीरी के सांसद अजय कुमार टेनी ने एक ऐसे साहित्यिक क्रांतिकारी पुरोधा के स्मृतियों के विस्मृत हो जाने के बारे बतया जिसे भारतीय लॊग भूल चुके है वे है पं बंशीधर शुक्ल I
समाजवादी व् प्रकृतिवादी विचारधारा को मानने वाले एक देश प्रेमी कवि साहित्यकार जो आर्थिक कठिनाइयों के कारन आठवीं तक ही पढ़ पाए थे.
किन्तु कभी आम जनमानस के बोलचाल व् साहित्य काव्य की लोकप्रिय भाषा रही अवधी जब विलुप्त होने के कगार पहुचने को थी की ऐसे में पं बंशीधर शुक्ल का ह्रदय अवधी के उद्धार के लिये तड़प उठता और अवधी के उद्धार के लिए वे प्रासंगिक हो जाते है
वैसे तुलसी बाबा की रामचरित मानस अकेले ही युगों युगों तक अवधी को जीवित रखने में सक्षम है
किन्तु आम जनमानस में प्रचलन व तत्कालीन अंग्रेजी राज के परिस्थितियों में अवधी में लेखन लगभग समाप्त हो चुका था, तब पं बंशीधर शुक्ल का उदय होता है, इनके पिता छेदीलाल शुक्ल भी एक कवि थे। वैसे आज भी अवध क्षेत्र के वासी अपनी भाषा बोली के प्रति कतई जागरुक नही है,
बंशीधर शुक्ल ने अपना साहित्यिक सफ़र सन 1925 से शुरु किया और इस सफ़र का अन्त उनकी अंतिम सांस 1980 से खत्म हुआ, इस काल में उन्होने हिंदी साहित्य की भी सेवा किया साथ ही अपनी देश प्रेम से सुसज्जित कविताओं के माध्यम से भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अपना अतुलनीय योगदान दिया।
वैसे जब वे कानपुर में गणेश शंकर विद्यार्थी के संपर्क में आए तो उनकी प्रेरणा से 1921 में स्वतंत्रता आंदोलन की राजनीति में कूद पड़े । बंशीधर शुक्ल अपनी रचनाओं के माध्यम से अंग्रेजी जुल्म के खिलाफ जमकर आग उगलने लगे।
दमदम कांड के बाद बंशीधर शुक्ल ने एक बेहद क्रांतिकारी रचना लिखी। यह लंबी कविता खूनी पर्चा के नाम से मशहूर हुई और बहुत लोकप्रिय हुई। अकेले यह कविता भारतीय जनमानस को तत्कालीन अंग्रेजी हुकूमत के जुल्म के विरूद्ध खड़ा कर दिया, तब पुलिस द्वारा लखीमपुर खीरी में बम बनाने व् क्रांतिकारी साहित्य पाए जाने के अपराध में उन्हें छह माह की जेल की सजा हुई। इसके बाद तो जेल आना जाना आम बात होगयी उनके लिए। नमक सत्याग्रह, भारत छोडो आदि सभी छोटे बड़े राजनैतिक आंदोलनों में उनकी सार्थक उपस्थिति रही। साथ ही उन्होंने अपना सर्वस्व क्रांतिकारियों की मदद करने में लगा दिया यहाँ तक की भूखे रहने तक की नौबत झेलनी पड़ी थी। साथ ही पंडित जी को यदि रास्ते में भी यदि कोई गरीब जन मिलते तो सहायता करने से नहीं चूकते यहाँ तक की उनके पास कुछ नही बचता कईबार वे अपना वस्त्र भी गरीबों मे बांट देते।
अंग्रेजी हुकूमत से बचने के लिए संत के वेश में बनारस के दशाश्वमेघ घाट पर प्रवचन करते और लोगो में क्रांतिकारी साहित्य वितरित करते, किन्तु उनकी कलम ने क्रांतिकारी रचनाएं लिखना जारी रखा। अवधी बोली को अपनी रचना का माध्यम बनाया और आगे चलकर अवधी सम्राट के नाम से जाने गए।
खूनी परचा के साथ ही राम मड़ैया, किसान की अर्ज़ी, लीडराबाद, राजा की कोठी, बेदखली, सूखा आदि रचनाये उस दौर में जनमानस में खूब प्रचलित रही।
1928 में उनकी लिखी प्रभातफेरी-‘उठो सोने वालों सवेरा हुआ है, वतन के फकीरों का फेरा हुआ है’ और 1929 में लिखी रचना गांधीजी की व् साबरमती आश्रम का प्रार्थना गीत आज भी प्रेरणा देता है
उठ जाग मुसाफ़िर भोर भई, अब रैन कहा जो सोवत है
जो सोवत है सो खोवत है ,जो जागत है सो पावत है
टुक नींद से अंखियां खोल जरा,पल अपने प्रभु से ध्यान लगा
यह प्रीति करन की रीति नही,जग जागत है तू सोवत है
तू जाग जगत की देख उडन,जग जागा तेरे बंद नयन
यह जन जाग्रति की बेला है,तू नींद की गठरी ढोवत है
है आज़ादी ही लक्ष्य तेरा,उसमें अब देर लगा न जरा
जब सारी दुनियां जाग उठी,तू सिर खुजलावत रोवत है
जनमानस में रचबस गई।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की की प्रेरणा पा कर उन्होंने आज़ाद हिंद फ़ौज का अमर मार्च गीत लिखा जो की आज भी देश भक्ति के लिए प्रेरणा का काम करता है
कदम कदम बढाये जा,खुशी के गीत गाये जा
ये जिंदगी है कौम की,तू कौम पर लुटाये जा
उडी तमिस रात है , जगा नया प्रभात है,
चली नयी जमात है, मानो कोइ बारात है,
समय है मुस्कराये जा
बहार की बहार में,बहार ही लुटाये जा।
जब तलक न लक्ष्य पूर्ण हो समर करेगे हम,
खडा हो शत्रु सामने तो शीश पे चढ़ेंगे हम,
विजय हमारे हाथ है,विजय ध्वजा उडाये जा
निगाह चौमुखी रहे विचार लक्ष्य पर रहे
जिधर से शत्रु आ रहा उसी तरफ़ नज़र रहे
स्वतंत्रता का युद्ध है,स्वतंत्र होके गाये जा
कदम कदम बढाये जा,खुशी के गीत गाये जा
ये जिंदगी है कौम की, तू कौम पर लुटाये जा।
शुक्ल जी के नाम पर उनके गांव मन्योरा में एक पुस्तकालय और लखीमपुर रेलवे स्टेशन में एक पुस्तकालय जो हमेशा बन्द रहता है। एक भारतीय स्वतन्त्रता सेनानी और आधुनिक तुलसी की बस यही स्मृति शेष है साथ ही उपेक्षित है।
जय हिन्द जय भारत

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