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खटिया

भरद्वाज विमान
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खटिया
जब सारी दुनिया के लोग पत्थर के बने आयताकार वस्तु पर बैठने और सोने के लिए उपयोग करते थे तब हमारे देश में लोग खटिये को बनाना निर्माण व उपयोग करना जान गये थे
खटिये का अवशेष सिंधु सभ्यता में भी संभवतः मिले हो, यह एक विशेष प्रकार का नरम कंफर्टेबल शॉक अबजर्बर फ्लेक्सीबल आरामदायक आराम करने सोने बैठने के आदि प्रकार के कार्यों मे प्रयुक्त होने वाला चौपाया प्रकार का निर्जीव काठ का सिरे पांव व रस्सीयों से बना होता है
वैसे यह संपूर्ण उत्तर भारत मे बेहद लोकप्रिय है जो तीन गुणा छ के आयताकार डिजाइन चार लकड़ी के उंचे पायों में चार लकड़ी के डंडे बाजूऔ को जोड़कर बनाया जाता है
इसके सत्तर प्रतिशत हिस्से को विशेष तरह से कलात्मक ढंग से चार पतली लगभग दो एमएम की रस्सीयों को तीर्यक ढंग से एक साथ चारो सिरो बाजू से मिला कर बुना जाता है
ये रस्सीयां प्राय: सन या जूट की बनी होती है शेष तीस प्रतिशत हिस्से को एक विशेष तरह से क्रास और बालों की चोटी जैसे बूना जाता है जिससे की खटिये के शेष हिस्सों के तनाव फ्लेक्सीबीलटी को कम ज्यादा करना होता है।
और खटिये के विशेषज्ञता प्राप्त बुनकर भी होते है भाई, सबको खटिये की बुनकइ नही आती किसी गांव गिराव में कोई एक या दो एक्सपर्ट खानदानी विशेषज्ञ होते हैं ।
यह खटिया भारतीय ग्रामीण गरीब जीवन शैली का अभिन्न अंग है बाल्यकाल से लेकर समस्त जीवन में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और मानव अपने अंत समय मे भी यही खटिये को ही पकड़ता है और मृत्यु के बाद भी खटिये को दान करने की प्रथा आज भी ग्राम समाज में बरकरार है
खटिये पर बैठना एक बहुत ही सम्मान व गर्व का विषय होता है शादी विवाह विवाद पंचायत आदि बहुतेरे ग्रामीण समाज के कार्यक्रम खटिये पर ही आज तक निपटाये जाते हैं।
खटिया समाज की बहुत ही सम्मानजनक विषय वस्तु है इसका दुरुपयोग समाज बर्दाश्त नही करता और अंतत: लोग खटिया खड़ी बिस्तरा गोल कर चल देतेे हैं
बात खटिया कल्चर की है जब शहरी लोग ग्रामीण समाज के लोगों से खटिये पर गुफ्तगू करने की मंशा करते है ग्रामीणों में शंका उत्पन्न होना स्वाभाविक सा है इसी देश मे गुजरात से हीरा विदेशों में, आंध्र से अंतरिक्ष में, चेन्नई से चाँद पर, कर्नाटक से मंगल पर अंतरिक्ष यान आये दिन भेजा जा रहा है और बाकी देश भर में अभी भी खटिये पर ही पंचायत करने की बातें हो रही है। तो ग्रामीणों के कान खड़े ही हो जाएंगे।
वैसे इस उत्तर क्षेत्र के नेतृत्व ने लोगों को खटिये मे ही उलझाये रखा हुआ है जैसे खटिये से आगे जाने नही देना चाहते है लगता है न ही जनता की ऐसी चाहत लगती है लोग अपनी सोच उपर खुद नही उठने देना चाहते है हर वस्तु परिस्थिति को स्वीकार करने की आदत सी हो गयी है।
किंतु खटिया विशुद्ध पुरातन भारतीय खोज है सरकार को इस पर पेटेंट के लिए दावा करना चाहिए। आजादी के बाद खटिये को वो सम्मान नहीं मिला जिसका यह खटिया हकदार रहा है,, साथ ही खटिये के बुनकरो को सम्मानित करना चाहिए जिन्होंने इसके निर्माण कला को अाजतक सँजोए रखा है बीना किसी सरकारी सहायता के। गरीबों का एक मात्र सहारा खटिया ही है।

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